गरमी की छुट्टियां होते ही अंशज अपने ननिहाल बीकानेर आ गया। पिछली बार जब वह आया था, तब छोटा था और इस बार कुछ बड़ा और समझदार हो गया है। छोटा था, तब उसे हर काम कहना पड़ता था। अब कुछ जरूरी काम वह बिना कहे ही करने लगा है। ननिहाल में पहुंचते ही उसने नाना-नानी के पैर छुए। मम्मी हंसकर बोलीं, “अब तुम सचमुच बड़े हो गए हो।” बहुत लंबा नहीं था, फिर भी उसे भूख लग गई थी। वह सोचने लगा कि उसे क्या कहना चाहिए और किसे कहना चाहिए। बड़े जो होते हैं, वे भूख लगी है ऐसे सीधे-सीधे कभी किसी से कहते नहीं हैं। अंशज ने अपनी मम्मी से पूछा, “मम्मी, मैं बड़ा हूं या छोटा?” मम्मी ने कहा, “क्यों? ऐसे क्यों पूछ रहा है?” अंशज ने अपनी मम्मी के कान में धीरे से बोला, “मुझे भूख लगी है और मैं छोटा हूं। बड़े तो ऐसा बोलते नहीं ना कि भूख लगी है।” मम्मी हंसने लगीं और बोलीं, “चल, मैं तुझे खाने को कुछ देती हूं।” अंशज को उसकी मम्मी प्यार से अंशी कहती थीं। नाना और नानी को अंशी की बात जब उसकी मम्मी ने बताई, तो वे भी हंसने लगे। नानाजी हाथ में मिठाई का डिब्बा लाए और बोले, “ले अंशी, तेरे लिए।” अंशज ने जैसे ही नानाजी के हाथ में रसगुल्लों का डिब्बा देखा, तो उछल पड़ा। “अरे नानाजी, रसगुल्ले। मैं सारे खा जाऊंगा। वैसे तो मुझे गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं। आज रसगुल्ले ही ठीक हैं।” अंशज डिब्बा नानाजी के हाथ से लेने लगा, तो मम्मी ने उसे टोका, “नहीं अंशी, ऐसे तुम कपड़े गंदे कर लोगे। मैं तुम्हें खिलाती हूं।” अंशज तो यही चाहता था। उसकी तो नानाजी के घर आते ही मौज लग गई। अंशज ने बड़े-बड़े तीन रसगुल्ले खाए। वह तो चार भी खा सकता था, पर मम्मी ने बीच में ही कह दिया, “अभी बस इतने ही, बाकी बाद में। ये कहीं भागे नहीं जा रहे हैं।” नानीजी बोलीं, “बीकानेर के तो रसगुल्ले और भुजिया नमकीन बहुत प्रसिद्ध हैं।” अंशज तुरंत बोला, “देखो नानीजी, मैं छोटा हूं और कह सकता हूं, रसगुल्ले तो खा लिए, पर भुजिया-नमकीन कहां हैं?” नानीजी ने कहा, “अरे भुजिया और नमकीन सब मिलेगा। मैं तुम्हारे मामा से कह दूंगी वह तुम्हारे लिए गुलाब जामुन भी ले आएगा। अब तो खुश हो?” अंशज ने भुजिया और नमकीन का भी आनंद लिया। शाम को घर लौटते हुए उसके मामा गुलाब जामुन लाना नहीं भूले। मामाजी से अंशज ने पहला सवाल किया, “मामाजी, आप गुलाब जामुन कहां से लाए?” मामाजी ने मुसकराते हुए कहा, “अरे, तुम्हें नहीं पता? मेरे ऑफिस में गुलाब जामुन का पेड़ है। जितने चाहे तोड़कर घर ले आओ।” मेरे साहब बहुत अच्छे हैं। उन्होंने तो यहां तक बोला है कि तुम अपने भांजे के लिए गुलाब जामुन के बीज ले जाना और उसके घर लगवा देना।” “सच! पर उन्हें कैसे पता चला कि मुझे गुलाब जामुन पसंद हैं?” “जब तुम्हारी नानी मुझे गुलाब जामुन लाने के लिए कह रही थीं, तब इतने जोर से बोल रही थीं कि मेरे पास बैठे साहब ने भी सुन लिया था।” अब बीच में मम्मी बोलीं, “अच्छा है ना, वह तुम्हारे लिए गुलाब जामुन के बीज देंगे, फिर तुम भी गुलाब जामुन का पेड़ लगा लेना।” “हां मम्मी, कितना अच्छा होगा। फिर जब मेरी इच्छा होगी तब फटाक से गुलाब जामुन तोड़ा और मुंह में। कितना मजा आएगा।” मामाजी बोले, “वह मजा तो जब आएगा, तब आएगा, अभी तो मजा लो। यह लो खाओ गुलाब जामुन।” अगले दिन नानाजी ने अंशज को बताया कि कल सब उसके साथ मजाक कर रहे थे। असल में गुलाब जामुन का कोई पेड़ होता ही नहीं। हां, गुलाब का पौधा और जामुन का पेड़ जरूर लगाया जाता है। अंशज ने नानाजी से कहा, “नानाजी, फिर तो हो गया काम। हम गुलाब का पौधा और जामुन का पेड़ एक साथ लगा देंगे, फिर तो गुलाब जामुन हो जाएंगे ना?” नानाजी हंसने लगे और अपनी गरदन हिलाकर कहा, “नहीं-नहीं।” अंशज बोला, “कोई बात नहीं नानाजी! और सुन रही हो नानीजी, मैं जब पूरी तरह बड़ा हो जाऊंगा, तब गुलाब जामुन के पेड़ का आविष्कार करूंगा।” अंशज की मम्मी बोलीं, “हां, यह हुई ना बात। तुम अभी से इसके बारे में सोचने लग जाओ। सोचना यह है कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता है।” नानाजी हंसते हुए बोले, “दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो नहीं हो सकता है। सब कुछ हो सकता है।” नानीजी कहां चुप रहने वाली थीं, वह भी बोलीं, “जरूर हो सकता है बेटा, असंभव भी संभव हो सकता है। मेरा अंशज जरूर आसमान से तारे तोड़कर लाएगा।” अंशज ने बस इतना कहा, “देखना, मैं हर असंभव को संभव करूंगा। मुझे बस पूरा बड़ा होने दो।”
No comments:
Post a Comment