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Friday, 17 April 2020

कोलकाता , पटना और प्यार Best Hindi Love Story


हावड़ा जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 8 पर मैंने भागकर छूटने वाली ट्रेन पकड़ी थी । बैग से टीशर्ट निकाली और बारिश में गीले हुए कपड़ों को बदलने के लिए वॉशरूम चला गया । बाहर निकला तो बारिश अब बंद हो चुकी थी । मैंने बैग से लाइटर निकालकर गीले टी-शर्ट को अंदर डाल दिया । डब्बे के दरवाजे के पास खड़ा हुआ और कानों में ईयरफोन और होठों के बीच सिगरेट डाल ली । बिना किसी के संगीत और ना ही कोई बातचीत के ईयरफोन बेवजह ही कानों में पड़ा हुआ था (हमारे बहुत सारे रिश्तो की तरह) । सिगरेट सुलगाने के बाद मैंने एक दो कश ली और सोचने लगा कि कम से कम इस ट्रैन ने तो प्लेटफार्म मेरे बिना नहीं छोड़ा जब मैंने पूरा सफर इसके साथ करने की ठान ली थी। इन सब उधेड़बुन के बीच मेरे सामने वाले जेब में झनझनाहट हुई तो मैंने मोबाइल निकाल ली। स्क्रीन पे अरबाज़ का नाम दिखा तो मैंने कॉल उठा लिया। कॉल उठाते ही सामने से आवाज़ आयी, "क्यों अमित ! निकाह में नहींं आओगे ? सारे माइकलाइट आ रहे हैं।"













उसने मेरा सर पकड़ा और आँखों में आँखें डाल के बोला, "ये कैसे मुमकिन है ! तुम्हारे जैसा लड़का जिसने दोस्ती के अलावा किसी चीज को इतनी एहमियत नहींं दी और फिर भी कोई दोस्त तुम्हारे इतने करीब नहींं आ पाया जो तुम्हारे मन के चारों तरफ बनी दीवार के पार झाँक भी सके। लेकिन आज ये आँसू , यह बात बयां कर रहे हैं कि वो दीवार टूट चुकी है ।"



मैंने कहा , "मैंने तुमसे कभी झूठ नहीं बोला। वो एक बंगाली लड़का है जो मेरे ही कॉलेज का था और वो उसके साथ थी और साथ खुश भी थी। वो बंगाली लड़का दिखने में अच्छा था, बहुत सारी भाषाएँ जानता था, नाचने का हुनर था, नाटक-नौटंकी करता था और पढ़ाई में भी अच्छा था। उस लड़के में वो सब था जो लड़की चाहती थी और मैं तो बेवजह ताव में रहने वाला साधारण लड़का था जो उस वक़्त इसे दोस्त के अलावा कुछ नहीं समझता था। लेकिन इस लड़के के कारण हमारी दोस्ती में कभी खलल नहीं पड़ी, न कभी कोई हमारे बीच आया और उस समय तक इतनी गहरी हो चुकी थी दोस्ती की वो लड़का भी हमारे बीच नहीं आ सकता था। 



मैंने कहा , "फिर हमने वक़्त का सफर कुछ वक़्त के लिए साथ तय किया। सुबह की पहली कक्षा में आँखों के विभाग के शिक्षक आते और मेरी आंख कुसुम के कॉल से खुलती थी । उसके बाद शायद रात के 2:00 बजे तक हम साथ ही होते थे । उसके हॉस्टल जाने पर कॉल और रोज की बातें - हम दो खुद को समझदार समझने वाले लोग दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी करने लग गए थे । कॉलेज का हर विभाग, मंदिर, ग्राउंड, हम दोनों के हॉस्टल के बीच के रास्ते, पेड़, तालाब और हम मिलकर इस दोस्ती को रोज अलग ऊचाइयों पे ले जा रहे थे । 250 लोगों की क्लास में हम दोनों अपनी अलग सी कहानी रच रहे थे । रविवार को हम दोनों बाहर जाने से बेहतर कॉलेज के तालाब के सामने साथ बैठना पसंद करते थे । उसके साथ होने पर मुझे ऐसा लगता है कि मुझे किसी चीज की जरूरत ही ना हो । उसी साल की दिवाली की छुट्टी में जब वह घर गई तो उसके आने में बहुत वक्त लग गया । शायद 20 दिन छुट्टी खत्म होने के बाद भी वह घर पर ही रही। इसी बीच मेरी बात एक लड़की जो मेरे कॉलेज की ही थी उससे होने लग गई । "

मैंने कहा, "उसने मुझसे कम बात करने की, व्यस्त रहने की शिकायत की तो पता नहींं क्यों पर मैंने उसे ही डांट दिया तो उसने गुस्से में कॉल काट दिया । उसने पहली बार मुझे व्हाट्सएप से ब्लॉक किया था । मुझे नहींं पता कि लोगों की जान जाती है तो कैसा महसूस होता है पर शायद ऐसा ही होता होगा जैसा मुझे उस वक्त लग रहा था। 2 दिन बाद उसने वापस कॉल किया और फिर हम दोनों के जज्बात उमड़ पड़े । वो रोने लगी और उसने कहा, 'ऐसा लग रहा था जैसे तुम मुझसे छूट रहे थे। मेरे पास तुम्हारे अलावा कोई नहींं है और ऐसे में तुम दूसरी लड़कियों से बात करते रहो।'

अगली सुबह उसे कोलकाता वापस आना था । सियालदह स्टेशन जो हमारे कॉलेज के पास में ही था वहां मैं भागते हुए पहुंचा । 7:00 बजे सुबह उठते ही मैंने जैसे उस दिन किसी और को देखा ही ना हो । और फिर उस दिन मुझे ट्रेन से उतरती दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की दिखी । मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैंने इसे पहली बार देखा हो और मुझे देखते ही प्यार हो गया हो । आते ही वो मुझसे लिपट गई और मुझे याद नहींं हम कितनी देर ऐसे रहे, लेकिन यह बात मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि हर एक बीतते पल के साथ मेरा प्यार बढ़ता चला गया । अलग होने के बाद भी हम इतने करीब तो थे ही उसकी पतली नाक और मेरे चपटी नाक के बीच दूरी बची ही नहींं थी । धड़कनों की आवाज ऐसे महसूस हो रही थी जैसे उस भीड़ में बस हम दोनों बचे हो । लोगों के पास होने के आभास बाद हम वहां से वापस कॉलेज चले गए । 

मैंने अब हंसते हुए बोला, " यार जिंदगी में जब सामने वाला शायर हो , लड़की का पड़ोसी हो, बचपन का दोस्त हो , तो चुपचाप हार मान लेनी चाहिए । मैंने जिंदगी में दो ही उपलब्धियां हासिल की थी एक मेडिकल कॉलेज में मेरा दाखिला और दूसरा कुसुम से मेरी दोस्ती । वह लड़का तो उसका बचपन से दोस्त था और इन सब के साथ वह मेडिकल कॉलेज में भी था ।
कुसुम की बात शायद ही मैंने कभी टाली हो लेकिन जब उसने मुझे इस लड़के से मिलने के लिए मेरे साथ पटना जाने की जिद की तो मैंने मना कर दिया और नाराजगी भी जाहिर की । वह पटना तो नहींं गयी लेकिन उसने मुझसे बात बंद कर कर दी । एक हफ्ते बाद मैंने उसे उसी लड़के के साथ मेरे कॉलेज के उसी तालाब के पास बैठे देखा जहां हमने साथ बैठकर जिंदगी की हर बात की थी। मुझे लगा जैसे मुझे मेरे ही घर से बेदखल कर दिया गया हो और मैं तमाशा देखता रह गया । मैं परेशान था और ऐसा नहींं था कि मैं पहली बार परेशान हुआ था, लेकिन मेरे साथ हर बार मेरी दोस्त होती थी जो अभी नहीं थी। मैंने बात करने की सोची लेकिन उसके व्हाट्सएप के स्टेटस में उन दोनों की फोटो जिस पर एक कविता जो इस शायर लड़के ने ही लिखी थी मुझे दिखी और फिर मैंने गुस्से में बात ही नहींं की ।
मुझे लिखना तो नहींं आता लेकिन मेरे पास मेरी बात कहने के लिए कोई जरिया रह ही नहींं गया था । मुझे प्यार करना नहींं आता, ना ही मैं कोई शायर हूँ , ना कोई गिटार बजाने वाला, ना तुम्हारे पड़ोस का कोई दोस्त, मुझ जैसे साधारण से दिखने वाले शख्स को तुम्हारे जैसी लड़की से इश्क करने की इजाजत मिलनी ही नहींं चाहिए थी । लेकिन अफसोस इसी बात की है कि मुझे तुमने ही बेशुमार मोहब्बत करने की इजाजत दे रखी है । जब मैं तुम्हें पानी पीते देखता हूँ तो तुम्हारी गर्दन से मुझे प्यार हो जाता है , तुम्हें लीपापोती करने की आदत नहींं लेकिन जब तुम्हारे होठों में बस हल्की गुलाबी रंग चढ़ती है तो तुम्हारे होठों से प्यार हो जाता है, मेरे चेहरे से टकराने वाले बालों से प्यार हो जाता है, गुस्से में देखती हो तो तुम्हारी आंखों से प्यार हो जाता है, हंसने पर तुम्हारी नाक से और जब बेहद करीब हो तो तुम्हारी साँसों से मुझे प्यार हो जाता है । मुझे दुख इस बात का है कि मैं दोस्ती और प्यार के बीच अंतर को मिटाते मिटाते तुम्हें ही अपने ज़ेहन से मिटाने लग गया हूँ । 
ये दोस्ती तो खूबसूरत झील सी है जिसे हज़ारों सालों बाद एक दिन घने जंगल में बदल जाना है - इस बात का इल्म है मुझे !! लेकिन इसे कचड़े से भरकर मरने के लिए नहींं छोड़ना चाहिए था। फिर हम दोनों को किसी पर्यावरण के हितैषी की तरह रोज़ इसे बचाने की कोशिश करते हुए देखना बहुत तकलीफ देता है। मैंने कहा था कि तुम्हे बेशुमार प्यार करने वाला चाहिए , शायद मैं नहीं कर पाया, या शायद दोस्ती नहीं निभा पाया । और कभी कभी मैं खुद को बदसूरत लगने लगता हूँ, सोचता हूँ काश तुम्हे पसंद आ पाता, या शायद ज्यादा सोचने लगा हूँ।  

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